दृढ़ संकल्प: बाधाओं के पार सफलता की ओर
यह बात उन शुरुआती दिनों की है जब मेरी पत्नी ने अपना व्यवसाय शुरू किया था। उस समय हमारे पास खुद का लेज़र प्रिंटर नहीं था। कैमरा रेडी कॉपी प्रिंट करवाने के लिए हमें एक व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था। उस समय हमारे शहर में बिजली की समस्या बहुत आम थी, जिससे काम करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता था।
मेरे पैर में फ्रैक्चर हुआ था, जिसकी वजह से मैं ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था। ऐसे में मैंने अपने कंप्यूटर ऑपरेटर श्री राधेश्याम यादव से कहा कि वे फाइलें लेकर उस व्यक्ति के पास जाएं और प्रिंटिंग करवाएं। यादव जी ने पूरी निष्ठा से तीन-चार दिन लगातार वहां जाकर कोशिश की, लेकिन वे प्रिंटर को सही से कॉन्फ़िगर नहीं कर सके। इस वजह से काम रुका हुआ था।
मैंने आखिरकार खुद जाने का फैसला किया। मैंने कहा, “राधेश्याम, रिक्शा बुलाओ। मैं खुद जाऊंगा और यह काम पूरा करवाऊंगा।” राधेश्याम ने तुरंत आपत्ति जताई, “सर, वह ऑफिस तीसरी मंजिल पर है, और आपका पैर पहले ही टूटा हुआ है। आप सीढ़ियां कैसे चढ़ेंगे?” मैंने उनकी बात सुनी, लेकिन मेरे अंदर का संकल्प कहीं ज्यादा मजबूत था। मैंने जवाब दिया, “मैं जाऊंगा। चाहे जो भी हो, काम आज ही पूरा होगा।”
मेरे कहने पर यादव जी ने रिक्शा बुलाया। जैसे ही मैं रिक्शा में बैठने वाला था, बिजली चली गई। राधेश्याम ताली बजाते हुए हंसने लगे और बोले, “बिजली चली गई!” मैं मुस्कुराया और कहा, “बिजली कभी न कभी तो आएगी। अभी चलते हैं।”
हम वहां पहुंचे। ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर यादव ने उस व्यक्ति से पूछा कि बिजली कब तक आ सकती है। जवाब मिला, “पता नहीं, फिलहाल तो कोई संभावना नहीं है।” मैंने यादव से कहा, “कोई बात नहीं। हम सीढ़ियां चढ़कर उनके ऑफिस में बैठेंगे। बिजली जरूर आएगी, और हम यहीं से काम पूरा करेंगे।”
अपने टूटे पैर और दर्द के बावजूद मैंने तीसरी मंजिल तक चढ़ने का फैसला किया। दीवार का सहारा लेते हुए, धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए मैं ऊपर पहुंचा। ऊपर पौहुचने पर मेरा हाथ गलती से दीवार पर लगे दरवाजे की घंटी के स्विच पर लग गया, और घंटी बज गई।
उस दिन मैंने सीखा कि अगर आपका संकल्प अडिग है और आप मेहनत करने से पीछे नहीं हटते, तो हालात चाहे कितने भी मुश्किल क्यों न हों, आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
यह अनुभव आज भी मुझे याद दिलाता है कि हिम्मत और जज़्बा किसी भी रुकावट को पार करने की कुंजी है।